भाग्य Vs कर्म Things To Know Before You Buy

बिना फल की इच्छा के कोई कर्म क्यों करेगा? शायद इसी सवाल के जवाब में गीता में आगे कहा गया है – न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्। कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै: (प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना ही पड़ता है। कोई भी शख्स एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता।)

आचार्य जी पहुंचे और सबसे मिलने लगे, उन्होंने मुझे देखा, मुस्कुराये और सभी से थोड़ी देर बाद मिलने को कहा।

दोनों को अलग-अलग देखने के कारण ही यह झगड़ा चल रहा है। वास्तविकता यह है कि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस बात को समझाने के लिए वैसे तो सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं। एक उदाहरण है- एक निर्जन स्थान पर लगे आम के पेड़ से आमों को तोडनÞे के लिए कुछ बच्चे पत्थर भाग्य Vs कर्म फेंक रहे थे। पेड़ के उस पार झाडियÞों के पीछे एक व्यक्ति जा रहा था।

Do vyakti apne apne khet me kua khodate hai ak vykti ke kue se pani nikal ata hai dusre ke kue me pani nahi nikalta ye kaya hi!

(मुझे लगा जैसे मैं अपने ही बनाये हुए जाल में फंस रहा था)

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अगर अच्छे कर्म न किये हो तो अच्छा ज्योतिष मिलना भी मुश्किल होता है। हम कहते हैं कि ज्योतिष से क्या होगा अगर मेरे भाग्य में ही, यह सब लिखा हुआ है। मैं कहता हूं की तुम्हारे बहुत बुरे कर्म होंगे जिसकी वजह से तुम्हें आज बुरा वक्त काटना पड़ रहा है पर तुमने जरूर कुछ न कुछ अच्छे कर्म भी किये होंगे जिसकी वजह से आज तुम ज्योतिषी के पास पहुंच पाये हो या किसी सही ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले के पास कुछ जानने आ पाये हो।

to help you guidance the investigation, you can pull the corresponding mistake log from the Website server and submit it our assistance group. make sure you consist of the Ray ID (which can be at The underside of the mistake webpage). Additional troubleshooting resources.

पर हम किसी लगातार सफल व्यक्ति के ये गुण खुद में उतारने के स्थान पर लगेंगे भाग्य को दोष देने

अब परिवार के लोग सब से कहते फिरेंगे की मेरा बच्चा तो दिन रात –पढता है पर क्या करे भाग्य साथ नहीं देता

“दैव-दैव आलसी पुकारा”- आलसी ही दैव (भाग्य) का सहारा लेता है.

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 पर ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं होती कि सफलता या असफलता इंसान के कर्म से निर्धारित होती है, यानी कर्म हमेशा भाग्य से बड़ा होता है.

अंत में, अब अगर मेरे विचार आपको तार्किक लगें व् कर्म की ओर प्रेरित करें तो आप इसे क्या कहेंगे … “ मेरा कर्म या मेरा भाग्य “ फैसला आप पर है 

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